ठाकुरों का ‘कुटुंब परिवार’, “पोती का बर्थडे था या सत्ता का ब्रेकफास्ट?”

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

जब यूपी विधानसभा सत्र का दूसरा दिन सरकार और विपक्ष के बीच ज़ोरदार बहसों से भरपूर था, तब राजधानी लखनऊ के होटल क्लार्क अवध में चल रही थी ‘कुटुंब परिवार’ की ठंडी-ठंडी मीटिंग, जिसमें राजनीति की ताज़ा रेसिपी तैयार हो रही थी — ठाकुरों की थाली में सियासी संकेत।

बर्थडे का बहाना, राजनीति का बहाव

बैठक को भले ही “पोती का जन्मदिन” बताया गया, लेकिन गेस्टलिस्ट पढ़कर लगा मानो पोती के बर्थडे पर सदन के विधायक लड्डू खाने नहीं, लाइन क्रॉस करने आए थे।

40 विधायकों की मौजूदगी, ‘कुटुंब परिवार’ का बैनर, भगवान राम की मूर्ति, महाराणा प्रताप की तस्वीर, पीतल का त्रिशूल — ये सब राजनीति की पंडाल में संस्कृति की झिलमिलाती झालरें लग रहे थे।

जवाब भी हकलाए, बैनर भी बहाना बना

जब मीडिया ने सवाल उठाए तो जवाब मिले:

  • “होटल वालों ने बैनर गलत छपवा दिया।”

  • “कोई उद्देश्य नहीं था, ऐसे ही खा-पी लिया।”

मतलब, पोती का बर्थडे ऐसा कि होटल स्टाफ खुद ठाकुरवाद पर उतर आया? वाह!

सत्ता से नाराज़गी का स्वाद – सेवा विस्तार नहीं मिला!

इस बैठक का एक अनकहा एजेंडा भी था:
मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को सेवा विस्तार न मिलने से कुछ क्षत्रिय विधायक खफा हैं।

  • बंगाल और हिमाचल में अफसरों को एक्सटेंशन, लेकिन यूपी में नहीं?

  • क्या ठाकुरों की नज़र अंदाज़ी के खिलाफ एकजुटता की साजिश?

पश्चिमी यूपी के विधायक जयपाल सिंह और रामवीर सिंह इस आयोजन में अगुवा थे — और यह वही पश्चिम यूपी है जहां टिकट कटौती से लेकर नियुक्तियों तक क्षत्रिय असंतोष पहले भी दिख चुका है।

सपा + बीजेपी = ठाकुर? ये गणित पुराना है या प्रयोग नया?

इस मीटिंग की सबसे दिलचस्प बात:
सपा के बागी विधायक
 भाजपा के नाराज़ ठाकुर
 निर्दलीय भी शामिल

सवाल उठते हैं:

  • क्या यह ठाकुर लॉबी की सत्ता को चेतावनी है?

  • क्या मंत्रिमंडल विस्तार से पहले यह दबाव रणनीति है?

  • क्या BJP नेतृत्व को यह जातिगत लामबंदी मंज़ूर है?

तस्वीरें दिल्ली तक, संदेश क्या गया?

‘कुटुंब परिवार’ की तस्वीरें अब दिल्ली के BJP मुख्यालय तक पहुँच चुकी हैं। जहां एक ओर प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चा है, वहीं दूसरी ओर यह बैठक सीधा संदेश है:

“संगठन कुछ भी कहे, हम तो परिवार बनाकर भी राजनीति कर सकते हैं!”

पर्दे के पीछे की पटकथा

सूत्रों की मानें तो:

  • दो बड़े ठाकुर विधायकों ने इस आयोजन की स्क्रिप्ट पहले ही लिख दी थी।

  • मैसेज साफ है — अगर नजरअंदाज़ी बढ़ी, तो “कुटुंब परिवार” कभी “राजनीतिक परिवार” भी बन सकता है।

सवाल जो सत्ता को चुभेंगे:

  1. सदन चल रहा था, विधायक होटल में क्या कर रहे थे?

  2. क्या जाति आधारित लामबंदी पार्टी लाइन से ऊपर है?

  3. BJP-सपा ठाकुर विधायकों का मेल क्या गठजोड़ की शुरुआत है?

  4. क्या भाजपा हाईकमान को यह सब मंज़ूर है?

  5. क्या कैबिनेट विस्तार से पहले यह ‘ठाकुर कार्ड’ खेला गया है?

राजनीति अब परिवारवाद से नहीं, ‘परिवार’ से निकलेगी!

‘कुटुंब परिवार’ कहकर जो बात छुपाई गई, वो अब हर गली, सोशल मीडिया और सत्ता के गलियारे में गूंज रही है। जातिगत गठजोड़ की इस बारीक राजनीति में भले ही मिठाई परोसी गई हो, लेकिन सियासत तीखी है — और इशारा सीधा है

सरकार को तय करना होगा — ‘परिवार’ को गले लगाए या उसे चुनौती माने।

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